आज़ादी एक ऐसा शब्द है जिसे सुनकर ऐसा लगता है मानो, मन पक्षी बन कर आसमान में उड़ रहा हो और कोई भी उसे रोक ना पाए लेकिन यह तो काल्पनिक आज़ादी है, ना तो हमारे पंख है और ना ही हम उड़ सकते हैं। समय और उम्र के साथ-साथ आज़ादी के मायने भी बदल जाते हैं। बचपन में खेलने कूदने की आज़ादी की छूट तो बड़े होकर घूमने-फिरने और सखियों के साथ गप्पे लड़ाने की आजादी।
लेकिन मेरे दृष्टिकोण से एक आज़ाद देश की पहचान उसके नागरिकों की वैचारिक स्वतंत्रता से ही होती है, अर्थात मेरे दृष्टिकोण में वैचारिक स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण है। हमें अपने विचारों को स्पष्ट रूप से दूसरों के सामने व्यक्त करने की पूर्ण रूप से स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। हमारी मानसिकता हमारे विचारों से ही व्यक्त होती है। अगर हम वैचारिक रूप से स्वतंत्र है तो हम दूसरों के जीवन में भी कम हस्तक्षेप करेंगे । उसको भी अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे जिससे उसका भला होगा और सब का भला होगा इसी में ही हमारे देश का भी भला होगा।
इसी बात को मेरी चंद पंक्तियां बयां करती है-
आजादी मेरी नज़र में है स्वच्छंद विचारों का होना
जहां चहके चिड़िया की तरह नभ का हर कोना।।
भाव अपने कर सके सब व्यक्त
आवाज सुनी जाए सबकी हर वक्त
डर ना हो किसी के तन में
शांति हो नव के हर रंग में
(रीना नलवाया)